रात और उम्मीदें

रात और उम्मीदें

रात की इस वीरानियों में, उम्मीदों के चिराग जलाए हैं,
अंधेरों के साये में भी, खुद को खोज कर लाए हैं।
मुझमें किसी और का अक्स हो, ये मशवरा अक्सर लोग देते आए हैं,
खुद में तलाशा मैंने हर अक्स को, पर वो मिला नहीं जो लोग बताते आए हैं।

एक शख्स ऐसा मिला था, जिससे चरागों का नूर थमा है,
बस उम्मीद की बातें, दिलों में गहरा शोर मचा है।
हौले से सिरहाने में, उसकी बातों से गुफ्तगू करते आए हैं,
वो चला गया एक दिन मगर, उसकी यादों ने उम्मीदें जगाए हैं।

न रात से गिला, न उम्मीदों से खफा,
अफसोस बस इतना रहा कि वो शख्स थोड़े देर से मुझे मिला।
ख्वाहिश थी कि उसकी अंचल का एक धागा मैं बन जाऊं,
उसकी आँखों की गहराईयों में, खोकर भी खुद को पाऊं।

रातों में जगमगाता जुगनु, ख्वाबों में लगाए नये पर, क्यूंकि खुद की खुदी बचा के रखने का अच्छा होता है असर
अब न रात से लगता है डर, किसी ने बताया था मंज़िल से ज़्यादा खूबसूरत है सफर।
अपने डर से जब अलग हुए, तो पता लगा कि हस्ती है उम्मीदों की भी हमारी
डर के साथ रहते रहते, खुद को ही भूल गए थे हम, अब रातों में उम्मीदों के साथ हम दिल से मुस्कुराए हैं|
रात की इस वीरानियों में, उम्मीदों के चिराग जलाए हैं…

About the Amateur Poet

Anish

खुद की खोज में निकला, जिंदगी के मंजर निहारता, जिंदगी की गहराइयों में, अपना अक्स तलाशता।

“Embarked on a quest to find myself, observing life’s varied scenes, In the depths of life, searching for my own reflection.” ~ Anish

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By Anish

Anish

खुद की खोज में निकला, जिंदगी के मंजर निहारता, जिंदगी की गहराइयों में, अपना अक्स तलाशता।

“Embarked on a quest to find myself, observing life’s varied scenes, In the depths of life, searching for my own reflection.” ~ Anish

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