गूंज

अनकही सी आरज़ू, गूँज जो गवाह न हो,
खामोशी की गहराई में, जो कहा वो सुना न हो।
ज़िंदगी के आईने में, अक्सर लोगों ने रंग बदला है,
जब भी मैं गिरते गिरते संभला, लोगों के लिए वो मसला है।

तलाश कैसी है वो पता नहीं, ढूँढा बहुत पर दिल के दराज़ में वो मिला नहीं,
इस दिल के सन्नाटे में भी, तलाशते रहने का कोई गिला नहीं।
ज़िंदगी की राहों में, हर मोड़ पे है एक ख्वाब,
कैफियत की उलझन, जैसे बांधे हो सिलवटों का नक़ाब।

छूटे अपने, टूटे सपने, ज़िंदगी में जो चाहा वो मिला नहीं,
ग़म के आगे चला हूँ ऐसे, नसीब से अब कोई गिला नहीं।
रात के इस पहर में, जब उम्मीदें भी सोती हैं,
मेरे दिल के कोने में, आरज़ू फिर भी रोशन होती हैं।

अनकही सी आरज़ू, गूँज जो गवाह न हो,
खामोशी की गहराई में, जो कहा वो सुना न हो…

About the Amateur Poet

Anish

खुद की खोज में निकला, जिंदगी के मंजर निहारता, जिंदगी की गहराइयों में, अपना अक्स तलाशता।

“Embarked on a quest to find myself, observing life’s varied scenes, In the depths of life, searching for my own reflection.” ~ Anish

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By Anish

Anish

खुद की खोज में निकला, जिंदगी के मंजर निहारता, जिंदगी की गहराइयों में, अपना अक्स तलाशता।

“Embarked on a quest to find myself, observing life’s varied scenes, In the depths of life, searching for my own reflection.” ~ Anish

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