शतरंज खेल बड़ा अजीब है, हर पल किसी की हार तो किसी की जीत है,
दोस्ती में दोस्त राज़दार है, वो साथ है तो फिर क्या हार है, क्या शह है और क्या ही मात है।
शतरंज की इस दुनिया में, हर मोहरे की अपनी कहानी है,
दोस्ती में हर लम्हा, बिन कहे यार की ज़ुबानी है।
शतरंज के खेल में बादशाह को संभालना पड़ता है,
दोस्ती में एक दोस्त का दिल बिना शर्त पालना पड़ता है।
खेल खत्म होने पर शतरंज तो वापस डिब्बे में सिमट जाता है,
दोस्ती का नूर मगर हर सुबह, नई उम्मीद जगाता है।
शतरंज की बिसात पे हर कोई माहिर बनना चाहता है,
हर चाल में वज़न, हर नज़र में जीत का जश्न मनाता है।
लेकिन दोस्ती की राह में, दिलों का मेल ही असली इनाम है,
यहां चालों की नहीं, एहसासों की खूबसूरत बारीकियों का काम है।
दोस्ती की चालें हैं शतरंज से परे,
इल्म हो भी हारने का, हम खुशी से यारों के संग चले।
ज़रूरी ये नहीं कि कौन जीतता है, कौन हारता है,
दोस्त बेज़ार हो भी तो, बिन जताए कौन संभालता है।
ज़रूरत नहीं किसी जीत की, न हार का सवाल है,
दोस्ती नज़र आंदाज़ कर दे, वो कैसा वाहीयात खयाल है?