न सोचा था कभी की होगी दोस्ती तुमसे,
मिला जब पहली दफा तो हुई नहीं गुफ्तगू तुमसे।
न ख्वाबों में ख्याल था, न दिल में कोई बात थी,
थी तो खूबसूरत ही मगर खामोश सी मुलाकात थी।
सिलसिला जो चल पड़ा, उसकी न कोई मंजिल थी,
कभी बातों में उलझ कर भी, दोस्ती अपनी मुकम्मल थी।
लोगों को पसंद कॉफी, हम चर्चा चाय पे करते थे,
उबलती चाय में कड़क पत्ती, शक्कर कम ही रखते थे।
बरसातों के मौसम में, जब हम छत पे बातें करते थे,
वो पल यूँही टूटे ना, खाने में Maggi बनते थे।
शरारतों की बारिश में, हर एक बूँद मीठी यादें लाती थी,
मस्ती की वो घड़ियाँ, हर ग़म को दूर भगाती थी।
दोस्ती की इस महफिल में, फैसलों की जगह नहीं,
हर सवाल का जवाब है, पर हुकूमत की रवायत नहीं।
यहाँ नज़रिये से नहीं, दिल से आँका जाता है,
खामियां हों चाहे लाख, यार में कभी नहीं बांटा जाता है।
तेरी मेरी दोस्ती, बंदिश नहीं आज़ादी की उड़ान है,
ये एक खुला आसमान है, जिसमें न कोई दीवार न कोई मकान है।
तेरी मेरी दोस्ती, कहानी ना कही बातों की,
समझ की उन गहराइयों में, जहां बसती हैं यादों की।
कल हो सकता है हम न हो, बातें भी न होती हो,
यादें रह जाएँ बस, दिल में कहीं वो सोती हो।
न मोहताज है ये दोस्ती, रोजाना बातें करने की,
अनकहे जज़्बातों का ये ताल्लुक, दिलों की खामोश नज़्मों की।
बंदिशें नहीं, आज़ादी है दोस्ती,
खुशनसीब हैं वो सब, जिन्हें मिली हो ऐसी दोस्ती…