अंधेरों की छाँव में, जब ख्वाब उजाला बन जाए,
उन आँखों की यादों में, हर रात सवेरा कहलाए।
जब रात के सन्नाटे में, कुछ भीगे अल्फाज़ों की बात हो,
उसकी मेरी खामोशी में, जज़्बात-ए-ग़ज़ल की आवाज़ हो।
ख्वाब अधूरे हैं भी अब, जब नींद से नाता खो जाए,
उसके साथ की गुरबत में भी, हौसले मालामाल हो जाए।
चांदनी की चादर ओढ़, जब गुज़रे लम्हे साथ चलें,
राहें भले बदल गईं, पर कुछ दूर तो हम साथ चले।
हाथों की लकीरों में, जब तू नई कहानी चुन रही,
फासलों के इस दास्तां में, जितनी भी थी, जैसी भी थी, वो कहानी सही रही।
क्या पाया, क्या खोया, इस दिल की बाजी में इल्तिजा नहीं,
पीछे मुड़ कर देखूं तो, सिर्फ मुस्कान होगी कोई गिला नहीं।
रात के अंधेरे में भी, आँखों में चिंगारी है,
नादान दिल जब घबराए, उसे समझाने की तरकीब सारी है।
रात की स्याही में, लफ्ज़-एहसास उजाले में आए,
यादों के नक्शे में भी, हर ख्वाब उजाला बन जाए।
अंधेरों की छाँव में, जब ख्वाब उजाला बन जाए…