रौशनी के परदे में गुमनाम

मोबाइल की रौशनी में, किसी का अक्स तलाशता एक चेहरा,
भीड़ का हिस्सा बनकर भी, वो शहर में अकेला सा लगता है।
नज़र फोन में गई, खोया ख्यालों की धुंध में,
सड़कों की इस महफ़िल में भी, ये शख्स शायद किसी कहानी का एक साज़ है,
दिल्ली की रातों में अक्सर गूंजती एक आवाज़ है।

दिलवालों का शहर है ये, कहते हैं इसका अपना एक रिवाज़ है,
मैं अभी जिसे हूँ देख रहा, वो बेचैने-मिजाज़ है।
शायद किसी दूर शहर से आया, ऑटो-रिक्शा चला रहा,
घर की याद, अपनों का साथ, शायद दिल को सता रहा।

न किसी से इसको बैर है, न धर्म में ये है बांटता,
एक नज़र से ये सभी, सवारी है तलाशता।
इस शहर की रौनक में भी, उसकी आँखों में नमी सी है,
जैसे दूर आसमान में कोई सितारा, चमक में थोड़ी कमी सी है।

हम अपनी ज़िन्दगी में ही कुछ इस तरह मशगूल हैं,
सब कुछ होते हुए भी उस शख्स से, मोल-भाव करने पे मजबूर हैं।
शायद एक दिन, इस शहर की गलियों में, वो अपनी मुस्कान फिर से पाएगा,
और ये दिलवालों का शहर, उसे अपनी गर्माहट से गले लगाएगा।

~ अनीश

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About the Amateur Poet

Anish

खुद की खोज में निकला, जिंदगी के मंजर निहारता, जिंदगी की गहराइयों में, अपना अक्स तलाशता।

“Embarked on a quest to find myself, observing life’s varied scenes, In the depths of life, searching for my own reflection.” ~ Anish

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By Anish

Anish

खुद की खोज में निकला, जिंदगी के मंजर निहारता, जिंदगी की गहराइयों में, अपना अक्स तलाशता।

“Embarked on a quest to find myself, observing life’s varied scenes, In the depths of life, searching for my own reflection.” ~ Anish

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