मोबाइल की रौशनी में, किसी का अक्स तलाशता एक चेहरा, भीड़ का हिस्सा बनकर भी, वो शहर में अकेला सा लगता है। नज़र फोन में गई, खोया ख्यालों की धुंध में, सड़कों की इस महफ़िल में भी, ये शख्स शायद किसी कहानी का एक साज़ है, दिल्ली की रातों में अक्सर गूंजती एक आवाज़ है। दिलवालों का शहर है ये, कहते हैं इसका अपना एक रिवाज़ है, मैं अभी जिसे हूँ देख रहा, वो बेचैने-मिजाज़ है। शायद किसी दूर शहर से आया, ऑटो-रिक्शा...
रौशनी के परदे में गुमनाम
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