Ankahi is aarzoon, goonj jo gawah na ho, khamoshi ki gahrayi mein jo kaha suna na ho…
Ankahi is aarzoon, goonj jo gawah na ho, khamoshi ki gahrayi mein jo kaha suna na ho…
ये बुझी बुझी सी शाम, सहमी हुई सी परछाइयाँ दिल तलाशे उजाला, मगर सुबह अभी हुई नहीं… कहीं के अँधेरे, कहीं के उजाले, हर एक शख्स इस सफर में है अपने सच को संभाले दिल-ए-आरज़ू की धुन पर, पहुँचना वहाँ है जहाँ हैं ज़हन के उजाले… एक रोशनी थी जो थी दूर से चमकती, पास आया तो देखा, वो रोशनी तो ख़ुद के साये में गुम थी ये बुझी बुझी सी शाम, सहमी सी परछाइयाँ दिल ने कहा, यह आख़िरी दुआ है, मगर वो ख़ुद के फ़ैसलों से...
मोबाइल की रौशनी में, किसी का अक्स तलाशता एक चेहरा, भीड़ का हिस्सा बनकर भी, वो शहर में अकेला सा लगता है। नज़र फोन में गई, खोया ख्यालों की धुंध में, सड़कों की इस महफ़िल में भी, ये शख्स शायद किसी कहानी का एक साज़ है, दिल्ली की रातों में अक्सर गूंजती एक आवाज़ है। दिलवालों का शहर है ये, कहते हैं इसका अपना एक रिवाज़ है, मैं अभी जिसे हूँ देख रहा, वो बेचैने-मिजाज़ है। शायद किसी दूर शहर से आया, ऑटो-रिक्शा...
मोहब्बत एक ऐसा लफ्ज़ था, जिसपे ऐतबार न था मेरा, जहां भी जिसको देखता, वो तलाश-ए-मोहब्बत कर रहा। मैं सोचता रहा यही, कि क्यों करूँ मोहब्बत पे यक़ीं, खुशनसीब होंगे वो जिन्हें मोहब्बत मिली, हमारे माज़ी ने सिखाया, ये हमारे बस की नहीं। वो इश्क़ की इंतहा, वो वादों का सिलसिला, वो कशमकश पाने की, बेसब्री का वो फलसफा, न जाने इस दौर का अलग ही है वाकया, अहसास से परे सब कर रहे अमली मशवरा। दिलों का ये कारोबार...