वो अलग ख्वाब था, जो कभी मैं देखता था,
लोगों के आम तजुर्बे से अलग, वो रोशनी खुद में समेटता था।
उस ख्वाब की बारिश के, हर बूँद में रंग बिखरा था,
मुहल्ले की गलियों और मैदानों को, जब मोबाइल ने ना छीना था।
मनचाहा चला था दिल का रास्ता, ख्वाहिशें दुनिया के आसमान में,
न किसी के परखने का डर, दिल अपनी ही धुन में गाता था शान से।
कागज की कश्तियां बहती थीं, बारिशों के पानी में,
आंखों की चमक थी कुछ और, छोटे सपनों के सच होने की कहानी में।
उस ख्वाब की गलियों में, ना था कोई पहरा,
बचपन का दिल बेखौफ, जैसे खुला आसमां सवेरा।
जहां दीवारों की ना होती थी बातें, ना किसी बंदिशों की थी सुगबुगाहट,
उलझनों के बाज़ार में भी, दिल को बेज़ार बेफिक्री की थी चाहत।
ना जीत की आरजू, ना हार का डर, हौसलों का जहां बेमिसाल,
यादों की महफिल में, कहानी गूंजती, सुनाए ज़िंदगी का हाल।
सफर के मोड़ पर, नए मंज़र उभरते जाते हैं,
आज कहानी का यह सिलसिला, नए नग्मे बन कर गुनगुनाते हैं।
वो ख्वाब थे, वो ख्वाब हैं, जो दिल को छू कर जाते,
जवां हों जब ये ख्याल, तो ज़िंदगी के मायने बदल जाते।
वो अलग ख्वाब था…