मोहब्बत एक ऐसा लफ्ज़ था, जिसपे ऐतबार न था मेरा, जहां भी जिसको देखता, वो तलाश-ए-मोहब्बत कर रहा। मैं सोचता रहा यही, कि क्यों करूँ मोहब्बत पे यक़ीं, खुशनसीब होंगे वो जिन्हें मोहब्बत मिली, हमारे माज़ी ने सिखाया, ये हमारे बस की नहीं। वो इश्क़ की इंतहा, वो वादों का सिलसिला, वो कशमकश पाने की, बेसब्री का वो फलसफा, न जाने इस दौर का अलग ही है वाकया, अहसास से परे सब कर रहे अमली मशवरा। दिलों का ये कारोबार...
मोहब्बत की तलाश में मोहब्बत
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