रात और उम्मीदें रात की इस वीरानियों में, उम्मीदों के चिराग जलाए हैं, अंधेरों के साये में भी, खुद को खोज कर लाए हैं। मुझमें किसी और का अक्स हो, ये मशवरा अक्सर लोग देते आए हैं, खुद में तलाशा मैंने हर अक्स को, पर वो मिला नहीं जो लोग बताते आए हैं। एक शख्स ऐसा मिला था, जिससे चरागों का नूर थमा है, बस उम्मीद की बातें, दिलों में गहरा शोर मचा है। हौले से सिरहाने में, उसकी बातों से गुफ्तगू करते आए हैं, वो...